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उ॒रौ वा॒ ये अ॒न्तरि॑क्षे॒ मद॑न्ति दि॒वो वा॒ ये रो॑च॒ने सन्ति॑ दे॒वाः। ऊमा॑ वा॒ ये सु॒हवा॑सो॒ यज॑त्रा आयेमि॒रे र॒थ्यो॑ अग्ने॒ अश्वाः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

urau vā ye antarikṣe madanti divo vā ye rocane santi devāḥ | ūmā vā ye suhavāso yajatrā āyemire rathyo agne aśvāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒रौ। वा॒। ये। अ॒न्तरि॑क्षे। मद॑न्ति। दि॒वः। वा॒। ये। रो॒च॒ने। सन्ति॑। दे॒वाः। ऊमाः॑। वा॒। ये। सु॒ऽहवा॑सः। यज॑त्राः। आ॒ऽये॒मि॒रे। र॒थ्यः॑। अ॒ग्ने॒। अश्वाः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:6» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:27» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वि विद्वन् ! जो (ऊमाः) मनोहर (वा) वा (ये) जो (सुहवासः) सुन्दर ग्रहण करनेवाली (वा) वा (ये) जो (यजत्राः) संगम को प्राप्त (रथ्यः) रथ के लिये हितरूप (अश्वाः) और व्याप्ति रखनेवाली किरणें (वा) वा (ये) जो (रोचने) प्रकाश में (देवाः) दिव्य किरणें (सन्ति) विद्यमान हैं वे (उरौ) पुष्कल (अन्तरिक्षे) आकाश में (दिवः) प्रकाश से (आयेमिरे) विथरती हैं उनको जो जानते हैं, वे सर्वदा (मदन्ति) हर्षित होते हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध रूप अग्नि की जो कि किरणें और गुण सबके प्रकाश करनेवाले रथादिकों के लिये हितरूप और आकर्षणशक्तियुक्त हैं, उनको जानकर सब प्राणियों की रक्षा करनेवाले होओ ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने पावक इव तेजस्विन् ! ये ऊमा वा ये सुहवासो वा ये यजत्रा रथ्योऽश्वाः वा ये रोचने देवा अश्वाः सन्ति त उरावन्तरिक्षे दिव आयेमिरे तान् ये विदन्ति ते सदा मदन्ति ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उरौ) पुष्कले (वा) (ये) (अन्तरिक्षे) आकाशे (मदन्ति) हर्षन्ति (दिवः) प्रकाशः (वा) (ये) (रोचने) प्रकाशे (सन्ति) (देवाः) दिव्याः (ऊमाः) कमनीयाः (वा) (ये) (सुहवासः) सुष्ठ्वादातारः (यजत्राः) सङ्गताः (आयेमिरे) विस्तृणन्ति (रथ्यः) रथाय हिताः (अग्ने) पावकस्य* (अश्वाः) व्याप्तिशीलाः किरणाः। अश्व इति किरणनाम०। निघं० १। ५ ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यूयं प्रसिद्धाऽप्रसिद्धरूपस्याग्नेर्ये किरणा गुणाश्च सर्वेषां प्रकाशका यानेभ्यो हिता आकर्षकास्सन्ति तान् विदित्वा सर्वेषां प्राणिनां रक्षका भवत ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! प्रसिद्ध व अप्रसिद्धरूप अग्नीची जी किरणे व गुण सर्वांना प्रकाश देणारी असतात व यान इत्यादीसाठी हितकारी व आकर्षणशक्तियुक्त असतात त्यांना जाणून तुम्ही सर्व प्राण्यांचे रक्षक बना. ॥ ८ ॥